लाला लाजपत राय की जीवनी



जन्म और प्रारंभिक जीवन:
लाला लाजपत राय का जन्म 28 जनवरी 1865 को पंजाब के फिरोजपुर जिले के धुंधिके गांव में हुआ था। उनके पिता राधाकृष्ण एक शिक्षक थे, और माता गुलाब देवी एक धार्मिक और साधारण महिला थीं। लाला जी का परिवार मध्यमवर्गीय था, और उनकी प्रारंभिक शिक्षा लुधियाना में हुई। उन्होंने लाहौर के गवर्नमेंट कॉलेज से कानून की पढ़ाई की और वकालत शुरू की।

राष्ट्रीय आंदोलन में प्रवेश:
लाला लाजपत राय ने युवावस्था में ही स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेना शुरू किया। वे आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानंद सरस्वती से प्रभावित थे और सामाजिक सुधारों को बढ़ावा देने में विश्वास रखते थे। वे 1880 के दशक में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से जुड़े और पंजाब में इसके प्रमुख नेताओं में से एक बने।

स्वदेशी आंदोलन और योगदान:
लाला लाजपत राय स्वदेशी आंदोलन (1905-1908) के प्रमुख नेताओं में से एक थे। उन्होंने बंगाल विभाजन के खिलाफ आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वे “लाल-बाल-पाल” (लाला लाजपत राय, बाल गंगाधर तिलक, और बिपिन चंद्र पाल) तिकड़ी के हिस्सा थे, जो कांग्रेस के गरम दल के नेता थे और ब्रिटिश शासन के खिलाफ सशक्त विरोध की वकालत करते थे।



प्रमुख योगदान:

  • शिक्षा और सामाजिक सुधार: लाला जी ने शिक्षा के प्रसार पर जोर दिया। उन्होंने 1921 में लाहौर में दयानंद एंग्लो-वैदिक (डी.ए.वी.) कॉलेज की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वे दलितों और पिछड़े वर्गों के उत्थान के लिए भी कार्यरत रहे।
  • पत्रकारिता: उन्होंने “द पीपल” नामक अंग्रेजी अखबार और “पंजाबी” नामक समाचार पत्र शुरू किया, जिसके माध्यम से उन्होंने राष्ट्रीय चेतना को जगाया।
  • ट्रेड यूनियन आंदोलन: लाला लाजपत राय ने मजदूरों के अधिकारों के लिए काम किया और 1920 में अखिल भारतीय ट्रेड यूनियन कांग्रेस (AITUC) के पहले अध्यक्ष बने।
  • साइमन कमीशन का विरोध: 1928 में जब ब्रिटिश सरकार ने साइमन कमीशन भेजा, जिसका उद्देश्य भारत के लिए संवैधानिक सुधारों पर विचार करना था, लाला जी ने इसका पुरजोर विरोध किया क्योंकि इसमें कोई भारतीय सदस्य नहीं था। उन्होंने “साइमन गो बैक” का नारा दिया।

लाठीचार्ज और शहादत:
30 अक्टूबर 1928 को लाहौर में साइमन कमीशन के खिलाफ प्रदर्शन के दौरान ब्रिटिश पुलिस ने लाला लाजपत राय पर बर्बर लाठीचार्ज किया। इस हमले में वे गंभीर रूप से घायल हो गए और 17 नवंबर 1928 को उनकी मृत्यु हो गई। उनकी मृत्यु ने देश में आक्रोश की लहर पैदा की और भगत सिंह जैसे क्रांतिकारियों को प्रेरित किया। भगत सिंह ने उनकी मृत्यु का बदला लेने के लिए सांडर्स की हत्या की।

विरासत:
लाला लाजपत राय को “पंजाब केसरी” या “शेर-ए-पंजाब” के नाम से जाना जाता है। उनके साहस, देशभक्ति और सामाजिक सुधारों के प्रति समर्पण ने उन्हें भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का एक महान नायक बनाया। उनकी शिक्षाएं और बलिदान आज भी लाखों भारतीयों को प्रेरित करते हैं।

निष्कर्ष:
लाला लाजपत राय एक ऐसे स्वतंत्रता सेनानी थे जिन्होंने न केवल आजादी की लड़ाई लड़ी, बल्कि शिक्षा, सामाजिक समानता और मजदूर अधिकारों के लिए भी संघर्ष किया। उनकी शहादत ने स्वतंत्रता संग्राम को और तेज किया और भारतीय युवाओं में देशभक्ति की ज्वाला प्रज्वलित की।