भगवान श्री कृष्ण जन्म की कहानी - Shree Krishna Janm Ki Kahani
भगवान श्री कृष्ण का जन्म एक दिव्य और चमत्कारी घटना थी, जो हिंदू धर्मग्रंथों, विशेष रूप से श्रीमद्भागवत पुराण और महाभारत में वर्णित है। उनकी जन्म कथा न केवल आध्यात्मिक महत्व रखती है, बल्कि यह भक्ति, चमत्कार और धर्म की विजय की प्रेरक कहानी भी है। नीचे संक्षेप में श्री कृष्ण के जन्म की कहानी प्रस्तुत है:
पृष्ठभूमि
मथुरा में कंस नामक एक क्रूर और अत्याचारी राजा का शासन था। वह देवकी का भाई था, जो वासुदेव की पत्नी थी। कंस को एक आकाशवाणी (दैवीय भविष्यवाणी) हुई थी कि देवकी का आठवां पुत्र उसका वध करेगा।
इस भय के कारण कंस ने देवकी और वासुदेव को कारागार में डाल दिया और उनकी संतानों को एक-एक करके मारना शुरू कर दिया।
श्री कृष्ण का जन्म
जब देवकी की आठवीं संतान का समय आया, तो वह कोई साधारण बालक नहीं, बल्कि स्वयं भगवान विष्णु का अवतार था। भाद्रपद मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को, रोहिणी नक्षत्र में, मध्यरात्रि के समय, मथुरा के कारागार में श्री कृष्ण का जन्म हुआ। उस समय प्रकृति में एक अलौकिक शांति और चमत्कार का वातावरण था।
जन्म के समय, भगवान की माया (दिव्य शक्ति) के प्रभाव से:
- कारागार के पहरेदार गहरी निद्रा में चले गए।
- जेल के ताले अपने आप खुल गए।
- वासुदेव को एक आकाशवाणी ने निर्देश दिया कि वह नवजात कृष्ण को गोकुल में नंद और यशोदा के पास ले जाएं, जो यमुना नदी के पार रहते थे।
यमुना पार और गोकुल में आगमन
वासुदेव ने नवजात कृष्ण को एक टोकरी में रखा और यमुना नदी की ओर बढ़े। उस समय यमुना नदी उफान पर थी, लेकिन भगवान की माया से नदी ने रास्ता दे दिया। शेषनाग (विष्णु के सेवक) ने अपने फन से वर्षा से कृष्ण की रक्षा की। गोकुल पहुंचकर वासुदेव ने कृष्ण को यशोदा के पास छोड़ा और उनकी नवजात कन्या (जो माया रूप थी) को मथुरा वापस ले आए।
कंस का अंत
जब कंस को पता चला कि देवकी की आठवीं संतान जन्मी है, तो वह उसे मारने के लिए आया। लेकिन जब उसने उस कन्या को मारने की कोशिश की, तो वह माया रूप में प्रकट हुई और कंस को चेतावनी दी कि उसका काल (कृष्ण) सुरक्षित है और वह उसका अंत करेगा।
इसके बाद, श्री कृष्ण गोकुल में यशोदा और नंद के पुत्र के रूप में पले-बढ़े। उन्होंने अपनी बाल लीलाओं से सभी को मोहित किया और अंततः कंस का वध करके मथुरा को उसके अत्याचार से मुक्त किया।
आध्यात्मिक महत्व
श्री कृष्ण का जन्म केवल एक ऐतिहासिक या पौराणिक घटना नहीं है, बल्कि यह धर्म की स्थापना और अधर्म के नाश का प्रतीक है। उनकी जन्म कथा भक्तों को यह संदेश देती है कि भगवान अपने भक्तों की रक्षा के लिए और धर्म की रक्षा के लिए हर युग में अवतार लेते हैं।
जन्माष्टमी के अवसर पर भक्त इस कथा को याद करते हैं और व्रत, पूजा, भजन-कीर्तन के माध्यम से श्री कृष्ण की भक्ति में लीन होते हैं।
यदि आप इस कथा के किसी विशेष हिस्से को विस्तार से जानना चाहते हैं, तो कृपया बताएं!
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