एक बार फिर से राजस्थान की मिट्टी में मिली पुरानी हड़प्पा सभ्यता देख कर चौक गए गांव वाले - 4,500 year old Harappan remains found in Jaisalmer
राजस्थान के जैसलमेर जिले में पाकिस्तान सीमा से लगभग 40 किलोमीटर दूर रटादिया री डेरी (Rathdiya Ri Deri) नामक स्थान पर हड़प्पा सभ्यता के 4,500 साल पुराने अवशेषों की खोज एक महत्वपूर्ण पुरातात्विक उपलब्धि है। यह थार मरुस्थल में हड़प्पा सभ्यता का पहला पुष्ट स्थल है, जो इस सभ्यता के भौगोलिक विस्तार और पर्यावरणीय अनुकूलन को समझने में नया दृष्टिकोण प्रदान करता है। इस खोज से हड़प्पा सभ्यता के ग्रामीण-शहरी गतिशीलता, व्यापारिक नेटवर्क, और मरुस्थलीय क्षेत्रों में जीवनशैली के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी मिलती है।
खोज का विवरण
- स्थान: रटादिया री डेरी, जैसलमेर, राजस्थान (पाकिस्तान सीमा के निकट, थार मरुस्थल में)।
- खोज का समय: यह खोज हाल ही में की गई, जिसकी जानकारी स्थानीय शिक्षक प्रदीप कुमार गर्ग ने दी। उनके द्वारा दी गई सूचना के आधार पर पुरातत्वविदों ने इस स्थल की जांच शुरू की।
- शोधकर्ता: इस उत्खनन का नेतृत्व राजस्थान विश्वविद्यालय के शोधकर्ता दिलीप कुमार सैनी, राजस्थान विद्यापीठ के प्रो. जीवन सिंह खरकवाल, और इतिहासकार पार्थ जगनी ने किया।
मिले अवशेष
उत्खनन में कई महत्वपूर्ण अवशेष प्राप्त हुए, जो हड़प्पा सभ्यता की विशेषताओं को दर्शाते हैं:
- 1.मिट्टी के बर्तन:
- लाल और गेहूं रंग के बर्तन, जो हड़प्पा सभ्यता की विशिष्ट शैली में हैं।
- विभिन्न प्रकार के बर्तन, जैसे कटोरे, घड़े, और छिद्रित जार।
- बर्तनों पर ज्यामितीय और प्राकृतिक डिज़ाइन, जो हड़प्पा काल की कला और शिल्प कौशल को दर्शाते हैं।
- 2.उपकरण:
- चर्ट (flint) से बने ब्लेड, जो संभवतः दैनिक उपयोग या शिकार के लिए थे।
- पत्थर के अन्य उपकरण, जो कृषि या निर्माण कार्यों में उपयोगी हो सकते थे।
- 3.भट्टी के अवशेष:
- एक प्राचीन भट्टी के अवशेष, जो धातु या मिट्टी के बर्तन बनाने में उपयोग की गई होगी।
- यह संकेत देता है कि स्थल पर स्थानीय स्तर पर शिल्प उत्पादन होता था।
- 4.अन्य सामग्री:
- मिट्टी और पत्थर के छोटे-मोटे अवशेष, जो दैनिक जीवन और गतिविधियों को समझने में सहायक हैं।
महत्व और निहितार्थ
- 1.थार मरुस्थल में हड़प्पा सभ्यता:
- यह खोज थार मरुस्थल जैसे शुष्क क्षेत्र में हड़प्पा सभ्यता की उपस्थिति को दर्शाती है, जो पहले मुख्य रूप से सिंधु नदी घाटी (पाकिस्तान) और भारत के गुजरात, हरियाणा, और पंजाब जैसे क्षेत्रों तक सीमित मानी जाती थी।
- यह सभ्यता की पर्यावरणीय अनुकूलन क्षमता को दर्शाता है, क्योंकि थार मरुस्थल में संसाधनों की कमी और कठिन जलवायु के बावजूद यहाँ बस्ती स्थापित की गई थी।
- 2.ग्रामीण-शहरी गतिशीलता:
- रटादिया री डेरी संभवतः एक ग्रामीण बस्ती थी, जो हड़प्पा सभ्यता के बड़े शहरी केंद्रों (जैसे हड़प्पा, मोहनजोदड़ो, धोलावीरा) से जुड़ी थी।
- यह स्थल छोटे पैमाने पर शिल्प उत्पादन और व्यापारिक गतिविधियों का केंद्र हो सकता था।
- 3.व्यापारिक नेटवर्क:
- स्थल की स्थिति पाकिस्तान सीमा के निकट होने के कारण यह संभवतः हड़प्पा सभ्यता के व्यापारिक नेटवर्क का हिस्सा था।
- चर्ट ब्लेड जैसे उपकरण और बर्तनों की शैली अन्य हड़प्पा स्थलों से मिलती-जुलती है, जो क्षेत्रीय और अंतर-क्षेत्रीय व्यापार की ओर इशारा करती है।
- 4.सांस्कृतिक महत्व:
- यह खोज हड़प्पा सभ्यता की सांस्कृतिक और सामाजिक संरचना को समझने में मदद करती है, विशेष रूप से मरुस्थलीय क्षेत्रों में।
- यह स्थल उस समय की सामाजिक-आर्थिक गतिशीलता और पर्यावरण के साथ तालमेल बिठाने की क्षमता को दर्शाता है।
खोज का संदर्भ
- हड़प्पा सभ्यता का काल: हड़प्पा सभ्यता (लगभग 2600 ईसा पूर्व से 1900 ईसा पूर्व) भारत की सबसे प्राचीन शहरी सभ्यताओं में से एक है, जो अपने उन्नत नगर नियोजन, जल प्रबंधन, और व्यापारिक नेटवर्क के लिए जानी जाती है।
- राजस्थान में अन्य स्थल: राजस्थान में पहले भी हड़प्पा सभ्यता से संबंधित कुछ स्थल, जैसे कालीबंगा (हनुमानगढ़), मिले हैं, जो इस सभ्यता का एक प्रमुख केंद्र था। रटादिया री डेरी की खोज इस क्षेत्र में सभ्यता के विस्तार को और सुदृढ़ करती है।
- थार मरुस्थल का महत्व: थार मरुस्थल में इस तरह की बस्ती की खोज यह दर्शाती है कि हड़प्पा सभ्यता के लोग कठिन पर्यावरणीय परिस्थितियों में भी जीवित रहने और समृद्ध होने में सक्षम थे।
शोध और भविष्य
- शोध पत्र: इस खोज से संबंधित शोध पत्र भारतीय और अंतरराष्ट्रीय पुरातत्व पत्रिकाओं में प्रकाशन के लिए प्रस्तुत किए गए हैं। इससे वैश्विक स्तर पर हड़प्पा सभ्यता के अध्ययन में नया योगदान मिलेगा।
- आगे का उत्खनन: शोधकर्ताओं का मानना है कि इस स्थल पर और गहन उत्खनन से हड़प्पा सभ्यता के अन्य पहलुओं, जैसे कृषि, जल प्रबंधन, और सामाजिक संरचना, के बारे में और जानकारी मिल सकती है।
- स्थानीय सहयोग: स्थानीय समुदाय, विशेष रूप से प्रदीप कुमार गर्ग जैसे व्यक्तियों, की भूमिका इस खोज में महत्वपूर्ण रही है, जो पुरातत्व में सामुदायिक भागीदारी के महत्व को दर्शाता है।
निष्कर्ष
रटादिया री डेरी की खोज राजस्थान के पुरातत्व और हड़प्पा सभ्यता के अध्ययन में एक ऐतिहासिक कदम है। यह न केवल इस सभ्यता के भौगोलिक विस्तार को दर्शाता है, बल्कि थार मरुस्थल जैसे चुनौतीपूर्ण क्षेत्र में इसके अनुकूलन और सांस्कृतिक समृद्धि को भी उजागर करता है। यह खोज हड़प्पा सभ्यता के व्यापारिक, सामाजिक, और आर्थिक नेटवर्क को समझने में महत्वपूर्ण योगदान देगी और भविष्य में इस क्षेत्र में और शोध को प्रेरित करेगी।
यदि आप किसी विशेष पहलू, जैसे बर्तनों की शैली, व्यापारिक नेटवर्क, या इस खोज के वैश्विक महत्व पर और जानकारी चाहते हैं, तो कृपया बताएँ!
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